1990 VS 2024 KITNA BADAL GAYA INSAN


 खद्दर की चादर ओढ़े, हाथ में माला लिए शाहनी जब दरिया के किनारे पहुंची तो पौ फट रही थी। दूर-दूर आसमान के परदे पर लालिमा फैलती जा रही थी। शाहनी ने कपड़े उतारकर एक ओर रक्खे और 'श्रीराम, श्रीराम' करती पानी में हो ली। अंजलि भरकर सूर्य देवता को नमस्कार किया, अपनी उनीदी आंखों पर छींटे दिये और पानी से लिपट गयी!

चनाब का पानी आज भी पहले-सा ही सर्द था, लहरें लहरों को चूम रही थीं। वह दूर सामने काश्मीर की पहाड़ियों से बंर्फ पिघल रही थी। उछल-उछल आते पानी के भंवरों से टकराकर कगारे गिर रहे थे लेकिन दूर-दूर तक बिछी रेत आज न जाने क्यों खामोश लगती थी! शाहनी ने कपड़े पहने, इधर-उधर देखा, कहीं किसी की परछाई तक न थी। पर नीचे रेत में अगणित पांवों के निशान थे। वह कुछ सहम-सी उठी!

आज इस प्रभात की मीठी नीरवता में न जाने क्यों कुछ भयावना-सा लग रहा है। वह पिछले पचास वर्षों से यहां नहाती आ रही है। कितना लम्बा अरसा है! शाहनी सोचती है, एक दिन इसी दुनिया के किनारे वह दुलहिन बनकर उतरी थी। और आज...आज शाहजी नहीं, उसका वह पढ़ा-लिखा लड़का नहीं, आज वह अकेली है, शाहजी की लम्बी-चौड़ी हवेली में अकेली है। पर नहींयह क्या सोच रही है वह सवेरे-सवेरे! अभी भी दुनियादारी से मन नहीं फिरा उसका! शाहनी ने लम्बी सांस ली और 'श्री राम, श्री राम', करती बाजरे के खेतों से होती घर की राह ली। कहीं-कहीं लिपे-पुते आंगनों पर से धुआं उठ रहा था। टनटनबैलों, की घंटियां बज उठती हैं। फिर भी...फिर भी कुछ बंधा-बंधा-सा लग रहा है। 'जम्मीवाला' कुआं भी आज नहीं चल रहा। ये शाहजी की ही असामियां हैं। शाहनी ने नंजर उठायी। यह मीलों फैले खेत अपने ही हैं। भरी-भरायी नई फसल को देखकर शाहनी किसी अपनत्व के मोह में भीग गयी। यह सब शाहजी की बरकतें हैं। दूर-दूर गांवों तक फैली हुई जमीनें, जमीनों में कुएं सब अपने हैं। साल में तीन फसल, जमीन तो सोना उगलती है। शाहनी कुएं की ओर बढ़ी, आवांज दी, शेरे, शेरे, हसैना हसैना...।

शेरा शाहनी का स्वर पहचानता है। वह न पहचानेगा! अपनी मां जैना के मरने के बाद वह शाहनी के पास ही पलकर बड़ा हुआ। उसने पास पड़ा गंडासा 'शटाले' के ढेर के नीचे सरका दिया। हाथ में हुक्का पकड़कर बोलाऐ हैसैना-सैना...। शाहनी की आवांज उसे कैसे हिला गयी है! अभी तो वह सोच रहा था कि उस शाहनी की ऊंची हवेली की अंधेरी कोठरी में पड़ी सोने-चांदी की सन्दूकचियां उठाकर...कि तभी 'शेरे शेरे...। शेरा गुस्से से भर गया। किस पर निकाले अपना क्रोध? शाहनी पर! चीखकर बोलाऐ मर गयीं एं एब्ब तैनू मौत दे

हसैना आटेवाली कनाली एक ओर रख, जल्दी-जल्दी बाहिर निकल आयी। ऐ आयीं आं क्यों छावेले (सुबह-सुबह) तड़पना एं?

अब तक शाहनी नंजदीक पहुंच चुकी थी। शेरे की तेजी सुन चुकी थी। प्यार से बोली, हसैना, यह वक्त लड़ने का है? वह पागल है तो तू ही जिगरा कर लिया कर।

जिगरा! हसैना ने मान भरे स्वर में कहाशाहनी, लड़का आंखिर लड़का ही है। कभी शेरे से भी पूछा है कि मुंह अंधेरे ही क्यों गालियां बरसाई हैं इसने? शाहनी ने लाड़ से हसैना की पीठ पर हाथ फेरा, हंसकर बोलीपगली मुझे तो लड़के से बहू प्यारी है! शेरे

हां शाहनी!

मालूम होता है, रात को कुल्लूवाल के लोग आये हैं यहां? शाहनी ने गम्भीर स्वर में कहा।

शेरे ने जरा रुककर, घबराकर कहा, नहीं शाहनी... शेरे के उत्तर की अनसुनी कर शाहनी जरा चिन्तित स्वर से बोली, जो कुछ भी हो रहा है, अच्छा नहीं। शेरे, आज शाहजी होते तो शायद कुछ बीच-बचाव करते। पर... शाहनी कहते-कहते रुक गयी। आज क्या हो रहा है। शाहनी को लगा जैसे जी भर-भर आ रहा है। शाहजी को बिछुड़े कई साल बीत गये, परपर आज कुछ पिघल रहा है शायद पिछली स्मृतियां...आंसुओं को रोकने के प्रयत्न में उसने हसैना की ओर देखा और हल्के-से हंस पड़ी। और शेरा सोच ही रहा है, क्या कह रही है शाहनी आज! आज शाहनी क्या, कोई भी कुछ नहीं कर सकता। यह होके रहेगा क्यों न हो? हमारे ही भाई-बन्दों से सूद ले-लेकर शाहजी सोने की बोरियां तोला करते थे। प्रतिहिंसा की आग शेरे की आंखों में उतर आयी। गंड़ासे की याद हो आयी। शाहनी की ओर देखानहीं-नहीं, शेरा इन पिछले दिनों में तीस-चालीस कत्ल कर चुका है परपर वह ऐसा नीच नहीं...सामने बैठी शाहनी नहीं, शाहनी के हाथ उसकी आंखों में तैर गये। वह सर्दियों की रातें कभी-कभी शाहजी की डांट खाके वह हवेली में पड़ा रहता था। और फिर लालटेन की रोशनी में वह देखता है, शाहनी के ममता भरे हाथ दूध का कटोरा थामे हुए 'शेरे-शेरे, उठ, पी ले।' शेरे ने शाहनी के झुर्रियां पड़े मुंह की ओर देखा तो शाहनी धीरे से मुस्करा रही थी। शेरा विचलित हो गया। 'आंखिर शाहनी ने क्या बिगाड़ा है हमारा? शाहजी की बात शाहजी के साथ गयी, वह शाहनी को जरूर बचाएगा। लेकिन कल रात वाला मशवरा! वह कैसे मान गया था फिरोंज की बात! 'सब कुछ ठीक हो जाएगा सामान बांट लिया जाएगा!'

शाहनी चलो तुम्हें घर तक छोड़ आऊं!

शाहनी उठ खड़ी हुई। किसी गहरी सोच में चलती हुई शाहनी के पीछे-पीछे मंजबूत कदम उठाता शेरा चल रहा है। शंकित-सा-इधर उधर देखता जा रहा है। अपने साथियों की बातें उसके कानों में गूंज रही हैं। पर क्या होगा शाहनी को मारकर?

शाहनी!

हां शेरे।

शेरा चाहता है कि सिर पर आने वाले खतरे की बात कुछ तो शाहनी को बता दे, मगर वह कैसे कहे?

शाहनी

शाहनी ने सिर ऊंचा किया। आसमान धुएं से भर गया था।

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